भारत
के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप
के बीच चूने की उथली चट्टानों की कड़ी है , इसे दुनिया
में एडम्स ब्रिज ( आदम का पुल ) व भारत में रामसेतु के नाम से
जाना जाता है। इस पुल की लंबाई
लगभग 30 मील (48 किमी ) है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य
को एक दूसरे से अलग करता है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है, समुद्र में
इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। अनेक स्थानों
पर यह सूखी और कई स्थानों पर उथली है, जिससे जहाजों का आवागमन संभव नहीं
है। चट्टानी उथलेपन के कारण यहां नावें चलाने में खासी दिक्कत आती है। कहा
जाता
है कि 15 शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया
जा सकता था लेकिन प्राक्रतिक तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया।
1480 ईस्वी
सन् में यह चक्रवात के कारण टूट गया।
रामसेतु मिथक है या...
वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि जब श्री राम ने सीता को लंकापति रावण
से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी
देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें
समुद्र के देवता वरुण भी थे, वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए
रास्ता मांगा था, परन्तु जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने
समुद्र
को सुखाने के लिए धनुष उठाया। डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें
बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका
नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैरने लगेगा और इस तरह श्री राम की
सेना
समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। यही हुआ भी इसके बाद श्रीराम की
सेना ने लंका तक पहुचने के लिए पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल
की।
नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक
पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता
है। इसी पुल को बाद में एडम्स ब्रिज का नाम मिला।
धर्मग्रंथों में जिक्र है सेतुबंधन का
पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल
दशहरा पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नात्याचित्रो में सेतु बंधन
का जिक्र किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही,
महाभारत में भी श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश
में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण
(चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40)
में भी श्री राम के सेतु का जिक्र किया गया है। एन्साइक्लोपीडिया
ब्रिटेनिका में इसे एडम्स ब्रिज के साथ-साथ राम सेतु कहा गया है।
कितना पुराना है रामसेतु
रामसेतु की उम्र को लेकर महाकाव्य रामायण में कई संदर्भो में दावे
किए
जाते रहे हैं। कई जगह इसकी उम्र 17 लाख साल बताई गई है, तो कुछ इतिहासविद
इसे करीब साढ़े तीन हजार साल पुराना बताते हैं। इस पर भी कोई एकमत नहीं है।
इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण सवाल उठता रहा है कि आखिर 30 किलोमीटर तक
लंबा यह छोटे-छोटे द्वीपों का समूह बना कैसे?
(1) रामसेतु करीब 3500 साल
पुराना है - रामासामी कहते हैं कि जमीन और द्वीपों का निर्माण साढ़े तीन हजार
पहले रामनाथपुरम और पंबन के बीच हुआ था। इसकी वजह थी रामेश्वरम और
तलाईमन्नार के दक्षिण में किनारों को काटने वाली लहरें। वह आगे कहते हैं कि
हालांकि द्वीपों की कार्बन डेटिंग मुश्किल से ही रामायण काल से मिलती है,
लेकिन रामायण से इसके संबंध की पड़ताल होनी ही चाहिए।
(2) रामसेतु प्राकृतिक
तौर पर नहीं बना - जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक और नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस
तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे
किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते
हैं।
(3) ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने विस्तृत सर्वे में इसे प्राकृतिक
बताया था - देश के इस जाने माने इंस्टीट्यूट ने राम सेतु के आसपास 91
बोरहोल्स बनाकर वहां से सैंपल लिए थे और उनकी पड़ताल की थी। इन्हें सेतु
प्रोजेक्ट के दफ्तर में रखा गया था।
(4) नासा कहता है कि रामसेतु प्राकृतिक
तौर पर बना - अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि भारत और श्रीलंका के
बीच पाक जलडमरूमध्य में मौजूद ढांचा किसी भी हालत में आदमी का बनाया हुआ
नहीं है। यह पूरी तरह प्राकृतिक है। सेतुसमुद्रम कॉपरेरेशन लि. के सीईओ
एनके रघुपति के मुताबिक उन्हें नासा के जॉन्सन स्पेस सेंटर की ओर से मिले
ईमेल में नासा ने अपने पक्ष का खुलासा किया है। नासा की तस्वीरों को लेकर
काफी हो हल्ला पहले ही मच चुका है।
क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना

2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया। इसके तहत
एडम्स ब्रिज के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के आवागमन लायक बनाया जाएगा।
इसके लिए कुछ चट्टानों को तोड़ना जरूरी है। इस परियोजना से रामेश्वरम देश
का सबसे बड़ा बंदरगाह बन जाएगा। तूतिकोरन बंदरगाह एक नोडल पोर्ट में
तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के कोस्टल इलाकों में कम से कम 13 छोटे
एयरपोर्ट बन जाएंगे। माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के
बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर
से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का
उपयोग करेंगे। मार्ग छोटा होने से सफर का समय और लंबाई तो छोटी होगी ही,
संभावना है कि जलपोतों का 22 हजार करोड़ का तेल बचेगा। 19 वें वर्ष तक
परियोजना 5000 करोड़ से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी जबकि इसके निर्माण में
2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है। नासा से मिली
तस्वीर का हवाला देकर दावा किया जाता है कि अवशेष मानवनिर्मित पुल के हैं।
नासा का कहना है ,' इमेज हमारी है लेकिन यह विश्लेषण हमने नहीं दिया।
रिमोट इमेज से नहीं कहा जा सकता कि यह मानवनिर्मित पुल है। अमेरिकी स्पेस
एजेंसी नासा ने कहा है कि उसके खगोल वैज्ञानिकों द्वारा ली गई तस्वीरें यह
साबित नहीं करतीं कि हिंदू ग्रंथ रामायण में वर्णित भगवान राम द्वारा
निर्मित रामसेतु का वास्तविक रूप में कोई अस्तित्व रहा है। यह बयान देने के
साथ ही नासा ने भाजपा के उस बयान को भी नकार दिया है जिसमें भाजपा ने कहा
था कि नासा के पास पाक स्ट्रेट पर एडम्स ब्रिज की तस्वीरें हैं जिन्हें
भारत में रामसेतु के नाम से जाना जाता है और कार्बन डेटिंग के जरिए इसका
समय 1.7 अरब साल पुराना बताया गया है। नासा के प्रवक्ता माइकल ब्रॉकस ने
कहा कि उन्हें कार्बन डेटिंग किए जाने की कोई जानकारी नहीं है।ब्रॉकस ने
कहा कि कुछ लोग कुछ तस्वीरें यह कहकर पेश करते हैं कि यह नासा के
वैज्ञानिकों द्वारा ली गई हैं लेकिन ऐसे चित्रों से कुछ भी साबित
करने का कोई आधार नहीं है। गौरतलब है कि अक्टूबर 2002 में कुछ एनआरआई
वेबसाइट्स, भारत मूल की समाचार एजेंसियों और हिंदू न्यूज सर्विस के माध्यम
से कुछ खबरें आई थीं जिनमें कहा गया था कि नासा द्वारा लिए गए चित्रों में
पाक स्ट्रीट पर एक रहस्यमय प्राचीन पुल पाया गया है और इन खबरों को तब भी
नासा ने नकारा था। गौरतलब है कि इस पूरे मामले के कारण रामसेतु जिस जगह
बताया गया है, भारत और श्रीलंका के बीच बने जलडमरू मध्य के उसी स्थान पर
दक्षिण भारत द्वारा प्रस्तावित 24 अरब रुपए की सेतुसमुद्रम नहर परियोजना
विवादास्पद हो गई है।
श्रीरामसेतु के टूटने का मतलब
भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित श्रीरामसेतु अगर भारत में न होकर विश्व
में कहीं और होता तो वहां की सरकार इसे ऐतिहासिक धरोहर घोषित कर संरक्षित
करती। भारत में भी यदि इस सेतु के साथ किसी अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख
महापुरूष का नाम होता तो इसे तोड़ने की कल्पना तो दूर इसे बचाने के लिए
संपूर्ण भारत की सेक्युलर बिरादरी जमीन आसमान एक कर देती। यह केवल यहीं
संभव है कि यहां की सरकार बहुमत की आस्था ही नहीं पर्यावरण, प्राकृतिक
संपदा, लाखों भारतीयों की रोजी-रोटी और राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा कर
रामसेतु जैसी प्राचीनतम धरोहर को नष्ट करने की हठधर्मिता कर रही है। हिंदू
समाज विकास का विरोधी नहीं परंतु यदि कोई हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी
मानसिकता के कारण विकास की जगह विनाश को आमंत्रित करेगा तो उसे हिंदू समाज
के आक्रोश का सामना करना ही पड़ेगा। समुद्री यात्रा को छोटा कर 424 समुद्री
मील बचाने व इसके कारण समय और पैसे की होने वाली बचत से कोई असहमत नहीं हो
सकता लेकिन सेतुसमुन्द्रम योजाना के कम खर्चीले और अधिक व्यावहारिक
विकल्पों पर विचार क्यों नहीं किया गया जिनसे न केवल रामसेतु बचता है अपितु
प्रस्तावित विकल्प के विनाशकारी नुकसानों से बचा सकता है? इस योजना को
पूरा करने की जल्दबाजी और केवल अगली सुनवाई तक रामसेतु को क्षति न पहुंचाने
का आश्वासन देने से माननीय सुप्रीम कोर्ट को मना करना क्या भारत सरकार के
इरादों के प्रति संदेह निर्माण नहीं करता? 1860 से इस परियोजना पर विचार चल
रहा है। विभिन्न संभावनाओं पर विचार करने के लिए कई समितियों का गठन किया
जा चुका है। सभी समितियों ने रामसेतु को तोड़ने के विकल्प को देश के लिए
घातक बताते हुए कई प्रकार की चेतावनियां भी दी हैं। इसके बावजूद जिस काम को
करने से अंग्रेज भी बचते रहे, उसे करने का दुस्साहस वर्तमान केंद्रीय
सरकार कर रही है। सभी विकल्पों के लाभ-हानि का विचार किए बिना जिस जल्दबाजी
में इस परियोजना का उद्घाटन किया गया, उसे किसी भी दृष्टि में उपयुक्त
नहीं कहा जा सकता। भारत व श्रीलंका के बीच का समुद्र दोनों देशों की
एतिहासिक विरासत है परंतु अचानक 23 जून 2005 को अमेरिकी नौसेना ने इस
समुद्र को अंतरराष्ट्रीय समुद्र घोषित कर दिया और तुतीकोरण पोर्ट ट्रस्ट के
तत्कालीन अध्यक्ष रघुपति ने 30 जून 2005 को गोलमोल ढंग से अनापत्ति
प्रमाणपत्र जारी कर दिया। इसके तुरंत बाद 2 जुलाई 2005 को भारत के
प्रधानमंत्री व जहाजरानी मंत्री कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और
करूणानिधि को साथ ले जाकर आनन-फानन में इस परियोजना का उद्घाटन कर देते
हैं। इस घटनाचक्र से ऐसा लगता है मानो भारत सरकार अमेरिकी हितों के संरक्षण
के लिए राष्ट्रीय हितों की आहुति दे रही है। कनाडा के सुनामी विशेषज्ञ
प्रो. ताड मूर्ति ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि 2004 में
आई विनाशकारी सुनामी लहरों से केरल की रक्षा रामसेतु के कारण ही हो पाई।
अगर रामसेतु टूटता है तो अगली सुनामी से केरल को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
इस परियोजना से हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे और इन पर आधारित लाखों
लोगों के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। इस क्षेत्र में मिलने वाले दुर्लभ शंख
व शिप जिनसे 150 करोड़ रूपये की वार्षिक आय होती है, से हमें वंचित होना
पड़ेगा। जल जीवों की कई दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी।
थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार
भारत के पास
यूरेनियम के सर्वश्रेष्ठ विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार है।
इसीलिए कनाडा ने थोरियम पर आधारित रियेक्टर विकसित किया है। यदि विकल्प का
सही प्रकार से प्रयोग किया जाए तो हमें यूरेनियम के लिए अमेरिका के सामने
गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। इसीलिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम
आजाद कई बार थोरियम आधारित रियेक्टर बनाने का आग्रह किया है। यदि रामसेतु
को तोड़ दिया जाता है तो भारत को थोरियम के इस अमूल्य भण्डार से हाथ धोना
पड़ेगा।
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी
इतना सब खोने के बावजूद रामसेतु को तोड़कर बनाए जाने वाली इस नहर की
क्या उपयोगिता है, यह भी एक बहुत ही रोचक तथ्य है। 300 फुट चौड़ी व 12
मीटर गहरी इस नहर से भारी मालवाहक जहाज नहीं जा सकेंगे। केवल खाली जहाज या
सर्वे के जहाज ही इस नहर का उपयोग कर सकेंगे और वे भी एक पायलट जहाज की
सहायता से जिसका प्रतिदिन खर्चा 30 लाख रूपये तक हो सकता है। इतनी अधिक
लागत के कारण इस नहर का व्यावसायिक उपयोग नहीं हो सकेगा। इसीलिए 2500 करोड़
रूपये की लागत वाले इस प्रकल्प में निजी क्षेत्र ने कोई रूचि नहीं दिखाई।
ऐसा लगता है कि अगर यह नहर बनी तो इससे जहाज नहीं केवल सुनामी की विनाशकारी
लहरें ही जाएंगी। रामसेतु की रक्षा के लिए भारत के अधिकांश साधु संत, कई
प्रसिद्ध वैज्ञानिक, सामाजिक व धार्मिक संगठन, कई पूर्व न्यायाधीश, स्थानीय
मछुआरे सभी प्रकार के प्रजातांत्रिक उपाय कर चुके हैं। लेकिन जेहादी एवं
नक्सली आतंकियों से बार-बार वार्ता करने वाली सेकुलर सरकार को इन देशभक्त
और प्रकृति प्रेमी भारतीयों से बात करने की फुर्सत नहीं है। इसीलिए मजबूर
होकर 12 सितम्बर 2007 को पूरे देश में चक्का जाम का आंदोलन करना पड़ा। इससे
रामसेतु को तोड़ने पर होने वाले आक्रोश की कल्पना की जा सकती है। राम सेतु
पर राजनीतिकेंद्र सरकार ने सेतु मुद्दे पर अपनी गर्दन फंसते देख तुरंत
यू-टर्न लेते हुए उच्चतम न्यायालय में दाखिल विवादित हलफनामा वापस ले लिया।
अब निकट भविष्य में सरकार संशोधित हलफनामा दायर करेगी। इससे पूर्व केंद्र
सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र की और से
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दिए गए शपथपत्र में कहा गया था कि
बाल्मीकि रामायण, तुलसीदास कृत रामचरित मानस और अन्य पौराणिक सामग्री ऐसे
ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हो सकते जिनसे पुस्तक में वर्णित चरित्रों के
अस्तित्व को साबित किया जा सके। केंद्र के अनुसार 17 लाख 50 हजार वर्ष
पुराने इस कथित राम सेतु का निर्माण राम ने नहीं किया बल्कि यह रेत और बालू
से बना प्राकृतिक ढांचा है जिसने सदियों से लहरों और तलछट के कारण विशेष
रूप ले लिया। केंद्र सरकार द्वारा दायर इस हलफनामे के बाद एकाएक हिन्दू
संगठनों में आक्रोश फैल गया। चारों आ॓र केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे
की निंदा की जाने लगी। विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री और
कानून मंत्री से फोन पर बात कर यह शपथपत्र वापस लेने की मांग की थी
उन्होंने कहा था कि सरकार के इस कार्य से करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को
ठेस पहुंची है।
परियोजना के विरोध मे जनादोलन
केंद्र की सेतु समुद्रम परियोजना को जारी रखने के फैसले के
खिलाफ विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने भी कमर कसते हुए देशभर में प्रदर्शन और
चक्काजाम किया। इस दौरान कानपुर में कार्यकर्ताओं के पथराव में तीन
पुलिसकर्मी तथा पुलिस के लाठीचार्ज में कुछ कार्यकर्ता घायल हो गए। इंदौर
में दो गुटों के बीच संघर्ष की वजह से क्षेत्र में निषेधाज्ञा लगा दी गई,
जबकि इंदौर में ही एक अन्य स्थान पर चार लोगों को गिरफ्तार किया गया। विहिप
और संघ परिवार से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा राजधानी दिल्ली
सहित देश के विभिन्न भागों में आज चक्काजाम करने से कई जगह यातायात बुरी
तरह प्रभावित हुआ। कुछ जगहों पर चक्काजाम के दौरान झड़प भी हुई। हिंदूवादी
संगठनों के कार्यकर्ताओं ने शहर में सौ से ज्यादा जगहों पर चक्काजाम किया।
तीन घंटे चले इस चक्काजाम से लोगों को खासी दिक्कत का सामना करना
पड़ा। राजस्थान में भी चक्काजाम का व्यापक असर रहा। इसके चलते तीन घंटे तक
सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। राज्य में सुबह आठ बजे से शुरू हुए
चक्काजाम आंदोलन के कारण सरकारी बस सेवा समेत अन्य वाहन नहीं चले, जिसके
कारण मुख्य सड़कें सूनी रहीं। वहीं केरल के कोयम्बटूर जिले में 25 स्थानों
पर भाजपा और अन्य हिन्दू संगठनों के करीब 1100 कार्यकर्ताओं को सड़क मार्ग
बाधित करने की कोशिश करते हुए हिरासत में लिया गया। मुंबई से प्राप्त
समाचार के अनुसार उत्तर पश्चिम मुंबई के एसवी रोड, साकी नाका और टुर्भे
नाका समेत 23 व्यस्त सड़कों पर संघ परिवार और उससे जुड़े संगठनों ने जाम
लगाया। इससे यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में खासी दिक्कतों का
सामना करना पड़ा।बिहार में राजधानी पटना सहित विभिन्न जिलों में विहिप तथ
संघ परिवार के संगठनों ने चक्काजाम किया। बंद समर्थकों ने प्रदेश के
बेतिया-मोतिहारी, मुजफ्फरपुर-पटना सहित कई अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों को
जाम किया।अहमदाबाद में विहिप एवं संघ परिवार से जुड़े संगठनों के
कार्यकर्ताओं ने गुजरात के 246 स्थानों पर चक्काजाम किया।केंद्र सरकार ने
सेतु समुद्रम परियोजना पर उठते विवाद व दायर हलफनामे से उपजी स्थिति से
निपटने के लिए सबसे पहले तो दायर हलफनामा को वापस लेते हुए अतिरिक्त
सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन और
न्यायमूर्ति आर. वी. रवीन्द्रन की खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि सरकार का
इरादा किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं था। श्री
सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार ने लोगों की भावनाएं आहत होने के मद्देनजर
हलफनामा वापस लेने का निर्णय लिया है और वह नया हलफनामा दायर
करेगी।न्यायालय ने नया हलफनामा दायर करने से पहले इस मुद्दे पर फिर से
विचार करने के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने का समय दिया और मामले की
सुनवाई अगले वर्ष जनवरी के पहले सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले
श्री सुब्रमण्यम ने न्यायालय के समक्ष दलील दी कि सरकार सभी धर्मों का
सम्मान करती है और बगैर किसी दुर्भावना के वह पूरे मसले की समीक्षा करेगी।
सरकार आवश्यकता पडने पर याचिकाकर्ता सहित सभी संबद्ध पक्षों से लोकतांत्रिक
भावना के तहत विचार विमर्श करेगी. क्योंकि यह संवेदनशील मसला है।खंडपीठ ने
31 अगस्त के उस अंतरिम आदेश को बरकरार रखने का भी निर्देश दिया है, जिसमें
रामसेतु को किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं करने का सरकार को निर्देश
दिया गया था। अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल ने कहा कि यथास्थिति आदेश को सुनवाई
की अगली तारीख तक बढाया जाता है तो भी सरकार को कोई एतराज नहीं है।सरकार ने
स्थिति नियंत्रित करने के प्रयास के तहत न्यायालय के समक्ष दलील दी कि
केंद्र सरकार ने सार्वजनिक भावनाओं को ध्यान में रखकर यह फैसला किया है।
सरकार सभी धर्मों, खासकर हिन्दुत्व के प्रति पूरा सम्मान रखती है। उन्होंने
कहा कि सरकार सभी संबंधित पक्षों को आश्वस्त करती है कि सभी मुद्दों की
फिर से सावधानीपूर्वक और परिस्थितिजन्य स्थितियों के तहत जांच की जाएगी और
वैकल्पिक सलाहों को भी ध्यान में रखा जाएगा। श्री सुब्रमण्यम ने कहा कि
केंद्र सरकार भी चाहती है कि उसके फैसले धार्मिक और सामाजिक बिखराव लाने की
बजाय समाज को एकजुट बनाए। उन्होंने मामले की समीक्षा और उस पर पुनर्विचार
के लिए सरकार को तीन महीने का समय दिये जाने का न्यायालय से आग्रह भी किया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार का हलफनामा किसी भी तरह से धार्मिक
मान्यताओं और स्वतंत्रता को ठेस पहुंचाने के इरादे से नहीं दाखिल किया गया
था।वाजपेयी सरकार ने दी थी मंजूरी1860 से ही कई बार इस परियोजना पर विचार
हुआ। आजादी के बाद 1955 में डा. ए. रामास्वामी मुदालियार के नेतृत्व में
सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट कमेटी बनी। कमेटी ने परियोजना को उपयुक्त पाया। 13
मार्च 2003 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इसे
मंजूरी दी। अंतत: 2 जून 2005 को मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार
के कार्यकाल में इसकी शुरूआत हुई।
राम सेतु नहीं यह नल सेतु
सेतु समुद्रम परियोजना पर एक बार चर्चा फिर छिड़ गई है। खासकर इसके
ऐतिहासिक और वैज्ञानिक संदर्भों के बारे में। समुद्र पर बनाए गए पुल के
बारे में चर्चा तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस और वाल्मीक रामायण के अलावा
दूसरी अन्य राम कथाओं में भी मिलती हैं। आश्चर्यजनक ढंग से राम के सेतु की
चर्चा तो आती है लेकिन उस सेतु का नाम रामसेतु था, ऐसा वर्णन नहीं मिलता।
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में
अलग ही वर्णन आता है। कहा गया है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर
उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित
पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल के बुद्धिकौशल से संपन्न हुआ
था। वाल्मीक रामायण में वर्णन है कि : -नलर्श्चके महासेतुं मध्ये नदनदीपते:।
स तदा क्रियते सेतुर्वानरैर्घोरकर्मभि:।। रावण की लंका पर विजय पाने में
समुद्र पार जाना सबसे कठिन चुनौती थी। कठिनता की यह बात वाल्मीक रामायण और
तुलसीकृत रामचरितमानस दोनो में आती है-वाल्मीक रामायण में लिखा है
-अब्रवीच्च हनुमांर्श्च सुग्रीवर्श्च विभीषणम। कथं सागरमक्षोभ्यं तराम
वरूणालयम्।। सैन्यै: परिवृता: सर्वें वानराणां महौजसाम्।। (हमलोग इस
अक्षोभ्य समुद्र को महाबलवान् वानरों की सेना के साथ किस प्रकार पार कर
सकेंगे ?) (6/19/28)वहीं तुलसीकृत रामचरितमानस में वर्णन है -सुनु कपीस
लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा।। संकुल मकर उरग झष जाती। अति
अगाध दुस्तर सब भांती।।समुद्र ने प्रार्थना करने पर भी जब रास्ता नहीं दिया
तो राम के क्रोधित होने का भी वर्णन मिलता है। वाल्मीक रामायण में तो यहां
तक लिखा है कि समुद्र पर प्रहार करने के लिए जब राम ने अपना धनुष उठाया तो
भूमि और अंतरिक्ष मानो फटने लगे और पर्वत डगमडा उठे।तस्मिन् विकृष्टे सहसा
राघवेण शरासने। रोदसी सम्पफालेव पर्वताक्ष्च चकम्पिरे।। गोस्वामी तुलसीदास
रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में लिखा गया है कि तब समुद्र ने राम को
स्वयं ही अपने ऊपर पुल बनाने की युक्ति बतलाई थी -नाथ नील नल कपि द्वौ
भाई। लरिकाईं रिघि आसिष पाई।।तिन्ह कें परस किए" गिरि भारे। तरिहहिं जलधि
प्रताप तुम्हारे।।(समुद्र ने कहा -) हे नाथ। नील और नल दो वानर भाई हैं।
उन्होंने लड़कपन में ऋषि से आर्शीवाद पाया था। उनके स्पर्श कर लेने से ही
भारी-भारी पहाड़ भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएंगे।मैं पुनि उर धरि
प्रभु प्रभुताई। करिहउ" बल अनुमान सहाई।। एहि बिधि नाथ पयोधि ब"धाइअ। जेहि
यह सुजसु लोक तिहु" गाइअ।। (मैं भी प्रभु की प्रभुता को हृदय में धारण कर
अपने बल के अनुसार (जहां तक मुझसे बन पड़ेगा)सहायता करूंगा। हे नाथ! इस
प्रकार समुद्र को बंधाइये, जिससे, तीनों लोकों में आपका सुन्दर यश गाया
जाए।)यह पुल इतना मजबूत था कि रामचरितमानस के लंका कांड के शुरूआत में ही
वर्णन आता है कि -बॉधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा।वाल्मीक रामायण में वर्णन
मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और
चौड़ाई दस योजन। दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्। ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं
सुदुष्करम्।। (6/22/76)सेतु बनाने में हाई टेक्नालाजी प्रयोग हुई थी इसके
वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं, जैसे -पर्वतांर्श्च समुत्पाट्य यन्त्नै:
परिवहन्ति च।(कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा -
समुद्रतट पर ले आए)। इसी प्रकार एक अन्य जगह उदाहरण मिलता है -
सूत्राण्यन्ये प्रगृहृन्ति हृाायतं शतयोजनम्। (6/22/62) (कुछ वानर सौ योजन
लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से -सिधाई में हो रहा
था।) सेतु पर रोचक प्रसंग :* तेलुगू भाषा की रंगनाथरामायण में प्रसंग आता है
कि सेतु निर्माण में एक गिलहरी का जोड़ा भी योगदान दे रहा था। यह रेत के
दाने लाकर पुल बनाने वाले स्थान पर डाल रहा था।* एक अन्य प्रसंग में कहा
गया है कि राम-राम लिखने पर पत्थर तैर तो रहे थे लेकिन वह इधर-उधर बह जाते
थे। इनको जोड़ने के लिए हनुमान ने एक युक्ति निकाली और एक पत्थर पर ‘रा’ तो
दूसरे पर ‘म’ लिखा जाने लगा। इससे पत्थर जुड़ने लगे और सेतु का काम आसान
हो गया। * तुलसीकृत श्रीरामचरित मानस में वर्णन आता है कि सेतु निर्माण के
बाद राम की सेना में वयोवृद्ध जाम्बवंत ने कहा था - ‘श्री रघुबीर प्रताप ते
सिंधु तरे पाषान’ अर्थात भगवान श्री राम के प्रताप से सिंधु पर पत्थर भी
तैरने लगे। वाल्मीकि रामायण में रामसेतु के प्रमाणरामसेतु के मामले में
भारतीय पुरातत्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में राम और रामायण के अस्तित्व को
नकारने वाला जो हलफनामा दायर किया था वह करोड़ों देशवासियों की आस्था को
चोट पहुंचाने वाला ही नहीं बल्कि इससे पुरातत्व विभाग की इतिहास दृष्टि पर
भी बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है। एएसआई के निदेशक (स्मारक) सी दोरजी का
यह कहना कि राम सेतु के मुद्दे पर वाल्मीकि रामायण को ऐतिहासिक दस्तावेज
नहीं माना जा सकता है, भारत की ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति के सर्वथा विरूद्ध
है।एक पुरातत्ववेत्ता के रूप में शायद उन्हें यह ज्ञान होना चाहिए था कि
एएसआई के संस्थापक और पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने सन 1862-63 में
अयोध्या की पुरातात्त्विक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी तो उन्होंने वाल्मीकि
रामायण के आधार पर अयोध्या को एक ऐतिहासिक नगरी बताया था। कनिंघम ने उस
रिपोर्ट में यह भी बताया था कि मनु द्वारा स्थापित इस अयोध्या के मध्य में
राम का जन्म स्थान मंदिर था। सन् 1908 में प्रकाशित ब्रिटिशकालीन
‘इम्पीरियल गजैटियर ऑफ इन्डिया’ के खण्ड पांच में ‘एडम ब्रिज’ के बारे में
जो ऐतिहासिक विवरण प्रकाशित हुआ है उसमें भी यह कहा गया है कि हिन्दू
परम्परा के अनुसार राम द्वारा लंका में सैनिक प्रयाण के अवसर पर यह पुल
हनुमान और उनकी सेना द्वारा बनाया गया था। डॉ. राजबली पाण्डेय के ‘हिन्दू
धर्म कोश’ (पृ. 558) के अनुसार रामायण के नायक राम ने लंका के राजा रावण पर
आक्रमण करने के लिए राम सेतु का निर्माण किया था। भारतीय तट से लेकर
श्रीलंका के तट तक समुद्र का उथला होना और वह भी एक सीध में इस विश्वास को
पुष्ट करता है कि यह रामायणकालीन घटनाक्रम से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अवशेष
है। वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड का बाईसवां अध्याय विश्वकर्मा के पुत्र
नल द्वारा सौ योजन लम्बे रामसेतु का विस्तार से वर्णन करता है। रामायण में
100 योजन लम्बे और 10 योजन चौड़े इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई
है-दश योजन विस्तर्ीणं शतयोजनमायतम्। दहशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्
।। वा.रा., युद्ध. 22.76 नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक
इस सेतु का निर्माण किया था। विशालकाय पर्वतों और वृक्षों को काटकर समुद्र
में फेंका गया था। बड़ी-बड़ी शिलाओं और पर्वत खण्डों को उखाड़कर यंत्रों
के द्वारा समुद्र तट तक लाया गया था- ‘पर्वतांश्च समुत्पाट्य यन्त्रै:
परिवहन्ति च’। वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त ‘अध्यात्म रामायण’ के
युद्धकाण्ड में भी नल द्वारा सौ योजन सेतु निर्माण का उल्लेख मिलता
है-‘‘बबन्ध सेतुं शतयोजनायतं सुविस्तृतं पर्वत पादपैर्दृढम्।’’दरअसल.
रामायणकालीन इतिहास के सन्दर्भ में पुरातत्त्व विभाग का गैर ऐतिहासिक रवैया
रहा है। प्रोव् बी.बी. लाल की अध्यक्षता में 1977 से 1980 तक रामायण
परियोजना के अन्तर्गत अयोध्या, चित्रकूट, जनकपुर, श्रृंगवेरपुर, भरद्वाज
आश्रम का पुरातत्त्व विभाग ने उत्खनन किया किन्तु श्रृंगवेरपुर को छोड़कर
अन्य रामायण स्थलों की रिपोर्ट आज तक प्रकाशित नहीं हुई। वर्तमान निदेशक
(स्मारक) को रामायण की ऐतिहासिकता को नकारने से पहले पुरातत्त्व विभाग
द्वारा रामायण परियोजनाओं की रिपोर्ट की जानकारी देनी चाहिए। यह कैसे हो
सकता है कि जब रामायण के स्थलों की खुदाई का सवाल हो तो वाल्मीकि रामायण को
प्रमाण मान लिया जाए मगर रामसेतु के मसले पर रामायण को ऐतिहासिक दस्तावेज
मानने से इन्कार कर दिया जाए। जाने माने पुरातत्त्ववेत्ता गोवर्धन राय
शर्मा के अनुसार प्रो. लाल को परिहार से ताम्रयुगीन संस्कृति के तीर भी
मिले थे जो स्थानीय लागों के अनुसार लव और कुश के तीर थे। किन्तु इन सभी
पुरातत्त्वीय सामग्री की व्याख्या तभी संभव है जब वाल्मीकि रामायण को
इतिहास का स्रोत माना जाए।